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श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्डम&a

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  • #31
    Re: श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्ड&#235

    श्रीः
    ।। श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्डम्॥
    प्रथमः सर्गः। १ ।।
    –––––––––––––––––––––––––––---------------
    रामार्थं वानरार्थं च चिकीर्षन् कर्म दुष्करम् ।
    समुद्रस्य परं पारं दुष्प्रापं प्राप्तुमिच्छति ॥ ३७ ॥
    ---------www.brahminsent.com------------------
    रामार्थं - ஸ்ரீராமருக்காகவும்
    वानरार्थं च - வானரர்களுக்காகவும்
    दुष्करम् - மற்றெவரும் செய்யதற்கரிய
    कर्म - செயலை
    चिकीर्षन् - செய்ய விரும்பியவராய்
    दुष्प्रापं - கிட்டுதற்கரிய
    समुद्रस्य - கடலின்
    परं पारं - எதிர்கரையை
    प्राप्तुं - அடைய
    इच्छति - எண்ணுகிறார்.
    ---------------- End of 37 -----------------------


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    • #32
      Re: श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्ड&#235

      श्रीः
      ।। श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्डम्॥
      प्रथमः सर्गः। १ ।।
      –––––––––––––––––––––––––––---------------
      इति विद्याधराः श्रुत्वा वचस्तेषां तपस्विनाम् ।
      तमप्रमेयं ददृशुः पर्वते वानरर्षभम् ॥ ३८ ॥

      ---------www.brahminsent.com------------------
      इति - இப்படி
      तेषां - அந்த
      तपस्विनाम् - ரிஷிகளுடைய
      वचः - சொல்லை
      श्रुत्वा - கேட்டு
      तं - அந்த
      अप्रमेयं - அளவற்ற ஆற்றலுடைய
      वानरर्षभम् - வானரோத்தமரை
      पर्वते - மலையில்
      विद्याधराः - வித்யாதரர்கள்
      ददृशुः - கண்டார்கள்.
      ---------------- End of 38 -----------------------


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      • #33
        Re: श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्ड&#235

        श्रीः
        ।। श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्डम्॥
        प्रथमः सर्गः। १ ।।
        –––––––––––––––––––––––––––---------------
        दुधुवे च स रोमाणि चकम्पे चाचलोपमः ।
        ननाद सुमहानादं सुमहानिव तोयदः ॥ ३९ ॥
        ---------www.brahminsent.com------------------
        अचलोपमः - மலைக்கு நிகரான
        सः - அவர்
        चकम्पे - குலுங்கினார்
        रोमाणि च - ரோமங்களையும்
        दुधुवे - சிலிர்கச்செய்தார்
        सुमहान् - மிகப்பெருத்த
        तोयदः - நீர்கொண்ட மேகம்
        इव च - போலவும்
        सुमहानादं - பேரொலியை
        ननाद - முழக்கினார்.
        ---------------- End of 39 -----------------------


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        • #34
          Re: श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्ड&#235

          श्रीः
          ।। श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्डम्॥
          प्रथमः सर्गः। १ ।।
          –––––––––––––––––––––––––––---------------
          आनुपूर्व्येण वृत्तश्च लाङ्गूलं लोमभिश्चितम् ।
          उत्पतिष्यन् विचिक्षेप पक्षिराज इवोरगम् ॥ ४० ॥
          ---------www.brahminsent.com------------------
          उत्पतिष्यन् - மேலெழும்ப எண்ணங்கொண்ட அவர்
          आनुपूर्व्येण - அடிமுதல் நுனிவரையில் முறையே
          वृत्तं - நீண்டும் சுருண்டும்
          रोमभिः - மயிர்களால்
          चितं च - செறிந்தும் இருக்கின்ற
          लांगूलं - வாலை
          पक्षिराजः - கருடர்
          उरगं - பாம்பை
          इव - சுழற்றுவதுபோல
          चिक्षेप - சுழற்றி உதறினார்.
          ---------------- End of 40 -----------------------


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          • #35
            Re: श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्ड&#235

            श्रीः
            ।। श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्डम्॥
            प्रथमः सर्गः। १ ।।
            –––––––––––––––––––––––––––---------------
            तस्य लाङ्गूलमाविद्धमतिवेगस्य पृष्ठतः ।
            ददृशे गरुडेनेव ह्रियमाणो महोरगः ॥ ४१ ॥
            ---------www.brahminsent.com------------------
            अतिवेगस्य - மிக வேமுடையவரான
            तस्य - அவருடைய
            पृष्ठतः - பின்புறத்தில்
            आविद्ध - சுழற்றி உதறப்பட்ட
            लाङ्गूलं - வால்
            गरुडेन - கருடரால்
            ह्रियमाणः - இழுக்கப்படும்
            महोरगः - பெரும் பாம்பு
            इव - போல்
            ददृशे - தோன்றிற்று.
            ---------------- End of 41 -----------------------


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            • #36
              Re: श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्ड&#235

              श्रीः
              ।। श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्डम्॥
              प्रथमः सर्गः। १ ।।
              –––––––––––––––––––––––––––---------------
              बाहू संस्तम्भयामास महापरिघसन्निभौ ।
              ससाद च कपिःकठ्यां चरणौ सञ्चुकोच च ॥ ४२ ॥
              ---------www.brahminsent.com------------------
              कपिः - வானரர்
              महापरिघसन्निभौ - பெரிய கணையமரங்கள் போன்ற
              बाहू - கைகளை
              संस्तंभयामास - அசையாமல் ஊன்றினார்
              कठ्यां च - இடையையும்
              ससाद - சுருக்கினார்
              चरणौ च - கால்களையும்
              सञ्चुकोच - மடக்கினார்.
              ---------------- End of 42 -----------------------


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              • #37
                Re: श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्ड&#235

                श्रीः
                ।। श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्डम्॥
                प्रथमः सर्गः। १ ।।
                –––––––––––––––––––––––––––---------------
                संहृत्य च भुजौ श्रीमांस्तथैव च शिरोधराम् ।
                तेजः सत्त्वं तथा वीर्यमाविवेश स वीर्यवान् ॥ ४३ ॥
                ---------www.brahminsnet.com------------------
                वीर्यवान् - வீர்யவானான
                सः - அந்த
                श्रीमान् - ஸ்ரீமான்
                भुजौ - தோள்களையும்
                तथा एव - அப்படியே
                शिरोधरां - கழுத்தையும்
                संहृत्य - சுருக்கி
                तेजः - தேஜஸ்ஸையும்
                सत्त्वं च - ஆண்மையையும்
                वीर्यं च - வீரத்தையும்
                तथा - அப்படியே
                आविवेश - மேற்கொண்டார்.
                ---------------- End of 43 -----------------------


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                • #38
                  Re: श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्ड&#235

                  श्रीः
                  ।। श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्डम्॥
                  प्रथमः सर्गः। १ ।।
                  –––––––––––––––––––––––––––---------------
                  मार्गमालोकयन्दूरादूर्ध्वं प्रणिहितेक्षणः ।
                  रुरोध हृदये प्राणानाकाशमवलोकयन् ॥ ४४ ॥
                  ---------www.brahminsnet.com------------------
                  ऊर्ध्वं - மேல்
                  प्रणिहितेक्षणः - நோக்கிய கண்களையுடையவராய்
                  दूरात् - தூரத்தினின்று
                  मार्गं - வழியை
                  आलोकयन् - பார்த்துக்கொண்டு
                  आकाशं - ஆகாசத்தையும்
                  अवलोकयन् - உற்றுநோக்கியவராய்
                  हृदये - நெஞ்சினுள்ளே
                  प्राणान् - மூச்கை
                  रुरोध - அடக்கினார்.


                  ---------------- End of 44 -----------------------


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                  • #39
                    Re: श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्ड&#235

                    श्रीः
                    ।। श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्डम्॥
                    प्रथमः सर्गः। १ ।।
                    –––––––––––––––––––––––––––---------------
                    पद्भ्यां दृढमवस्थानां कृत्वा स कपिकुञ्चरः ।
                    निकुञ्ज्य कर्णौ हनुमानुस्पतिष्यन् महाबलः ॥
                    वानरान् वानरश्रेष्ठ इदं वचनमब्रवीत् ॥ ४५ ॥
                    ---------www.brahminsnet.com------------------
                    कपिकुञ्चरः - வானரச்ரேஷ்டர்
                    पद्भ्यां - இரண்டு கால்களையும்
                    इदं - திடமாக
                    अवस्थाने कृत्वा - ஊன்றி
                    कर्णौ निकुञ्ज्य - காதுகளை வளைத்து
                    उत्पतिष्यन् - ஆகாயத்தில் பறக்கக் கருதிய
                    महाबलः - மஹா பலவானான
                    वानरश्रेष्ठः - வானரர்களில் சிறந்த
                    सः हनुमान् - அந்த ஹநுமார்
                    वानरान् - வானரர்களைப் பார்த்து
                    इदं - இந்த
                    वचनं - சொல்லைச்
                    अब्रवीत् - சொன்னார்.
                    ---------------- End of 45 --------------------


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                    • #40
                      Re: श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्ड&#235

                      श्रीः
                      ।। श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्डम्॥
                      प्रथमः सर्गः। १ ।।
                      –––––––––––––––––––––––––––---------------
                      यथा राघवनिर्मुक्त्तः शरः श्वसनविक्रमः ।
                      गच्छेत्तद्वद्गमिष्यामि लङ्कां रावणपालिताम् ॥ ४६ ॥
                      ---------www.brahminsnet.com------------------
                      राघवनिर्मुक्त्तः - ஸ்ரீராமர் விட்ட
                      शरः - பாணம்
                      श्वसनविक्रमः - வாயுவேகமுடையதாய்
                      यथा - எப்படி
                      गच्छेत् - போகுமோ
                      तद्वत् - அதுபோலவே
                      रावणपालितां - ராவணனால் பாதுகாக்கப்பட்ட
                      लङ्कां - லங்கையை நோக்கி
                      गमिष्यामि - போவேன்.
                      ---------------- End of 46 --------------------


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                      • #41
                        Re: श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्ड&#235

                        श्रीः
                        ।। श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्डम्॥
                        प्रथमः सर्गः। १ ।।
                        –––––––––––––––––––––––––––---------------
                        न हि द्रक्ष्यामि यदि तां लङ्कायां जनकात्मजाम् ।
                        अनेनैव हि वेगेन गमिष्यामि सुरालयम् ॥ ४७ ॥
                        ---------www.brahminsnet.com------------------
                        लङ्कायां - லங்காபுரியிலே
                        तां जनकात्मजां - அந்த ஜானகியை
                        न द्रक्ष्यामि - காணேன்
                        यदि हि - ஆகில்
                        अनेन - இந்த
                        वेगेन एव - வேகத்துடனேயே
                        सुरालयं हि - தேவருலகத்திற்கும்
                        गमिष्यामि - செல்வேன்.
                        ---------------- End of 47 --------------------


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                        • #42
                          Re: श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्डë







                          श्रीः

                          ।। श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्डम्॥
                          प्रथमः सर्गः। १ ।।
                          –––––––––––––––––––––––––––---------------
                          यदि वा त्रिदिवे सीतां न द्रक्ष्याम्यकृतश्रमः ।
                          बद्ध्वा राक्षसराजानम् आनयिष्यामि रावणम् ॥ ४८ ॥
                          ---------www.brahminsnet.com------------------
                          त्रिदिवे वा - தேவருலகத்திலும்
                          सीतां - சீதையை
                          न द्रक्ष्यामि यदि - காணேனாகில்
                          अकृतश्रमः - மனம் வருந்தாதவனாய்
                          राक्षसराजानं - அரக்கர்களின் அரசனான
                          रावणं - ராவணனை
                          बद्ध्वा - பிடித்துக்கட்டி
                          आनयिष्यामि - கொண்டு வருவேன்.
                          ---------------- End of 48 --------------------





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                          • #43
                            Re: श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्ड&#235






                            ************श्रीः

                            ।। श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्डम्॥
                            **********प्रथमः सर्गः। १ ।।
                            –––––––––––––––––––––––––––---------------
                            सर्वथा कृतकार्योऽहमेष्यामि सह सीतया ।
                            आनयिष्यामि वा लङ्कां समुत्पाट्य सरावणम् ॥ ४९ ॥
                            ---------www.brahminsnet.com------------------
                            सर्वथा- - - - -எவ்விதத்திலும்
                            अहं - - - - --நான்
                            कृतकार्यः
                            - - -கார்யத்தை முடித்தவனாய்
                            सीतया सह
                            - -சீதையோடுகூடவே
                            एष्यामि
                            - -- -வருவேன்;
                            वा
                            - - - - - -இல்லையெனில்
                            सरावणं
                            - -- -ராவணனுடன் கூடிய
                            लङ्कां
                            - - -- -லங்காபுரியை
                            समुत्पाट्य
                            - -அடியோடு பிடுங்கி
                            आनयिष्यामि
                            - கொண்டு வருவேன்.

                            ---------------- End of 49 --------------------



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                            • #44
                              Re: श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्ड&#235





                              ************श्रीः

                              ।। श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्डम्॥
                              **********प्रथमः सर्गः। १ ।।
                              –––––––––––––––––––––––––––---------------
                              एवमुक्त्वा तु हनुमान् वानरान् वानरोत्तमः ।
                              उत्पपाताथ वेगेन वेगवानविचारयन् ॥
                              सुपर्णमिव चात्मानं मेने स कपिकुञ्चरः ॥ ५० ॥
                              ---------www.brahminsnet.com------------------
                              वानरान्........ - வானரர்களைப் பார்த்து
                              एवं............. - இவ்வாறு
                              उक्त्वा तु....... - சொல்லிவிட்டு
                              वानरोत्तमः ..... - வானரச்ரேஷ்டரான
                              हनुमान् ........ - ஹனுமார்
                              वेगवान् ........ - அதிவேகமுடையவராய்
                              अविचारयन् .... - மனக்கவலையற்றவராய்
                              आत्मानं ........ - தம்மை
                              सुपर्णं इव ...... - கருடனைப்போலவே
                              मेने ............. - நினைத்தார்
                              अथ ............. - ஸந்தேஹமின்றி
                              सः .............. - அந்த
                              कपिकुञ्चरः ...... - வானரவீரர்
                              ................ - உடனே
                              वेगेन ............ - விரைவாக
                              उत्पपात ......... - மேலே பாய்ந்தார்
                              ---------------- End of 50 --------------------


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                              • #45
                                Re: श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्ड&#235







                                ................................श्रीः
                                ॥ श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्डम्॥
                                **********प्रथमः सर्गः। १ ।।
                                –––––––––––––––––––––––––––---------------
                                समुत्पतति तस्मिंस्तु वेगात्ते नगरोहिणः ।
                                संहृत्य विटपान् सर्वान् समुत्पेतुः समन्ततः ॥ ५१ ॥
                                ---------www.brahminsnet.com------------------
                                तस्मिन्................இ- அந்த
                                वेगात्........இ.........-- வேகத்தோடு
                                समुत्पति ..............- உயரக்கிளம்புகையில்
                                ते नगरोहिणः तु..- அந்த மலையில் முளைத்துள்ள
                                ................................மரங்கள் யாவும்
                                सर्वान्...................- எல்லா..
                                विटपान्...............- கிளைகளையும்.................
                                संहृत्य..................- சுருக்கிக்கொண்டு.......
                                समन्ततः.............- நான்கு புறத்திலும்....
                                समुत्पेतुः.............- மேலெழுந்தன........
                                ---------------- End of 51 --------------------


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