रघु वीर गद्यम् : ரகு வீர கத்யம் - (48 - 51) / 97 விபீஷண சரணாகதி !
48. अ-हित सहोदर रक्ष: परिग्रह विसम्वादि विविध सचिव विस्रंभण समय संरम्भ समुज्जृम्बित सर्वेश्वर भाव !
49. सकृत् प्रपन्न जन संरक्षण दीक्षित !
50. वीर !
51. सत्य व्रत !