रघु वीर गद्यम् : ரகு வீர கத்யம் - (38 - 41) / 97 மாரீசன் முதல் சபரி வரை !
38. मारीच माया मृग चर्म परि - कर्मित निर्भर दर्भ - आस्तरण !
39. विक्रम यशो लाभ विक्रीत जीवित गृध्र - राज देह दिधक्षा लक्षित भक्त - जन दाक्षिण्य !
40. कल्पित विबुध - भाव कबन्ध - अभि - नन्दित !
41. अवन्ध्य महिम मुनि - जन भजन मुषित हृदय कलुष शबरी मोक्ष साक्षी भूत !