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श्रीः
मा कुरु दर्पं, मा कुरु गर्वं
मा भज मानी, मानय सर्वम् ।
मा भज दैन्यं, मा भज शोकं
मदितमना भव, मोदय लोकम् ॥ १॥
मा वद मिथ्या, मा वद व्यर्थं
न चल कुमार्गे, न कुरु अनर्थम् ।
पाहि अनर्थं, पालय दीनं
लालय जननी-जनक-विहीनम् ॥ २॥
तनयं पाठय, तनयां पाठय
शिक्षय सुगुणं, कुगुणं वारय ।
कुरु उपकारं, कुरु उद्धारं
अपनय भारं, त्यज अपकारम् ॥ ३॥
मा पिब मादकवस्तु अपेयं
मा भज दुर्व्यसनं परिहेयम् ।
मा नय क्षणमपि व्यर्थं समयं
कुरु सकलं निजकार्यं सभयम् ॥ ४॥ण
१. पुण्यं कुरु
२. पापं मा कुरु
३. उपहारं कुरु
४.अपहारं मा कुरु
५. वन्दनं कुरु
६. निन्दनं मा कुरु
७. सहायं कुरु
८. उपद्रवं मा कुरु
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