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Sanskrit subhashitam

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    *समवेक्ष्येह धर्माथौं सम्भारान् योऽधिगच्छति।*
    *स वै सम्भृतसम्भारः सततं सुखमेधते॥*
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    भावार्थ : *जो व्यक्ति धर्म और अर्थ के बारे में भली-भाँति विचार करके न्यायोचित रूप से अपनी समृद्धि के साधन जुटाता है , उसकी समृद्धि बराबर बढ़ती रहती है और वह सुख साधनों का भरपूर उपभोग करता है।*
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    *The person who thinks fairly about religion and economy, justifies the resources of his own prosperity, his prosperity grows and he enjoys a lot of pleasures.*
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