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Sanskrit subhashitam

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    Anger-Sanskrit subhashitam


    *क्रोधः प्राणहरः शत्रु: क्रोधो मित्रमुखी रिपुः |*
    *क्रोधो हि असिर्महातीक्ष्णः सर्वं क्रोधोपकर्षति ||*
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    क्रोध एक प्राणहरण करने वाले शत्रु के समान है तथा मित्रों के बीच शत्रुता होने का कारण भी होता है | क्रोध एक तीक्ष्ण तलवार के समान है जो सब् को अपमानित कर हानि पहुंचाता है |
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    *Anger is like an enemy who can take away one's life and is also the main cause of enmity between friends. Anger is surely like a very sharp sword, which can cause harm and dishonour to everybody .*






    Worry-Sanskrit subhashitam


    *चिन्तया जायते दुःखं नान्यथेहेति निश्चयी।*
    *तया हीनः सुखी शान्तः सर्वत्र गलितस्पृहः॥*
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    भावार्थ : *चिंता से ही दुःख उत्पन्न होते हैं किसी अन्य कारण से नहीं, ऐसा निश्चित रूप से जानने वाला, चिंता से रहित होकर सुखी, शांत और सभी इच्छाओं से मुक्त हो जाता है ।*
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    *Worry is generated only by anxiety. Not for any other reason, such a person knowingly becomes free from anxiety, is happy, calm and free from all desires.*
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    *आपका आज का दिन मंगलमय रहे।*
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