Lamp-Sanskrit subhashitam
*सत्याधारस्तपस्तैलं दयावर्ति: क्षमाशिखा ।*
*अंधकारे प्रवेष्टव्ये दीपो यत्नेन वार्यताम् ॥*
*सत्याधारस्तपस्तैलं दयावर्ति: क्षमाशिखा ।*
*अंधकारे प्रवेष्टव्ये दीपो यत्नेन वार्यताम् ॥*
*घना अंधकार फैल रहा हो, ऑंधी सिर पर बह रही हो तो हम जो दिया जलाएं, उसकी दीवट सत्य की हो, उसमें तेल तप का हो, उसकी बत्ती दया की हो और लौ क्षमा की हो। समाज में फैले अंधकार को नष्ट करने के लिए ऐसा ही दीप प्रज्जवलित करने की आवश्यकता है।*
*The thick darkness is spreading, the oven is flowing over the head. So, the lamp which we burn, its lamp is of truth, In it there is oil of penance, its light is of mercy and flame is forgiveness. In order to destroy the darkness that is spread in society, there is a need to shine such a lamp.*