Peace is the greatest penance -Sanskrit subhashitam
*शान्तितुल्यं तपो नास्ति*
*न संतोषात्परं सुखम्*।
*न तृष्णया: परो व्याधिर्न*
*च धर्मो दया परा:*।।
*शान्ति के समान कोई तप नही है, संतोष से श्रेष्ठ कोई सुख नही,
तृष्णा से बढकर कोई रोग नही और दया से बढकर कोई धर्म नहीं।*
*There is no bliss as well as peace, there is no happiness beyond
satisfaction, no disease rising from craving and no religion rising
from compassion.*
*शान्तितुल्यं तपो नास्ति*
*न संतोषात्परं सुखम्*।
*न तृष्णया: परो व्याधिर्न*
*च धर्मो दया परा:*।।
*शान्ति के समान कोई तप नही है, संतोष से श्रेष्ठ कोई सुख नही,
तृष्णा से बढकर कोई रोग नही और दया से बढकर कोई धर्म नहीं।*
*There is no bliss as well as peace, there is no happiness beyond
satisfaction, no disease rising from craving and no religion rising
from compassion.*