*माता यस्य गृहे नास्ति भार्या चाप्रियवादिनी |*
*अरण्यं तेन गन्तव्यं यथाSरण्यं तथा गृहम् ||*
*अरण्यं तेन गन्तव्यं यथाSरण्यं तथा गृहम् ||*
जिस व्यक्ति को अपने घर में अपनी माता का संरक्षण प्राप्त न हो तथा उसकी पत्नी कटु वचन कहने वाली हो, तो ऐसे व्यक्ति के लिये यही उचित है कि वह् वनवासी हो जाय क्यों कि उसके लिये जैसा वन कष्टकर है वैसा ही अपने घर में रहना |
A person who has no mother to look after him and his wife is very rude and foul-mouthed, he should better reside in a forest, because his home is also just like a forest full of hardships.*
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